Chapter 10: स मे प्रियः

Sanskrit - Bhaswati • Class 11

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Chapter Analysis

Intermediate6 pages • Hindi

Quick Summary

यह अध्याय 'स मे प्रियः' भगवद्गीता के उपदेशों पर आधारित है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्मयोग का महत्व बताते हैं। यह धार्मिकता और नैतिकता की सीख देता है, जहां भक्त भगवान के प्रति समर्पण और समाज के उत्थान के लिए प्रयासरत होते हैं। इस पाठ में जीवन में निष्काम कर्म और अपनी आत्मा के प्रति ईमानदार रहने की प्रेरणा दी जाती है।

Key Topics

  • भगवद्गीता के उपदेश
  • कर्तव्य
  • भक्ति का महत्व
  • कर्मयोग और उसका महत्व
  • धर्म और नैतिकता
  • जीवन में निष्काम कर्म

Learning Objectives

  • भक्तियोग और कर्मयोग का अंतर समझना
  • भगवद्गीता के सिद्धांतों का आकलन करना
  • कर्तव्य परायणता के महत्व को समझना
  • आत्मा के अमरत्व के विषय में जानना
  • जीवन में धर्म और नैतिकता की राह पर चलना

Questions in Chapter

भक्ति का महत्त्व और उसके चार प्रकारों का वर्णन कीजिए।

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अर्जुन द्वारा व्यक्त शंका का क्या समाधान निकाला गया है?

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Additional Practice Questions

कर्मयोग और भक्तियोग के बीच का मुख्य अंतर क्या है?

medium

Answer: कर्मयोग में कर्म करना स्वयं के लाभ के बिना होता है जबकि भक्तियोग में भगवान की भक्ति पर केंद्रित होता है।

भगवद्गीता में आत्मा के अमरत्व के क्या सिद्धांत हैं?

hard

Answer: आत्मा का नाश कभी नहीं होता, यह अमर, अविनाशी और अनादि है।

भगवान कृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान क्यों दिया?

easy

Answer: क्योंकि अर्जुन युद्ध के प्रति अपने कर्तव्यों को समझने में असमर्थ थे और उनमें उत्तेजना थी।

इष्ट सिद्धि के लिए कर्म से बढ़कर क्या लाभ है?

medium

Answer: व्यक्ति की आस्था और भक्ति उसे सभी सिद्धियों से बढ़कर लाभ प्रदान करती है।

प्रकृति और पुरुष के सम्बन्ध का विवरण दीजिए।

medium

Answer: प्रकृति कर्म का माध्यम बनती है जबकि पुरुष इसका दर्शक होता है।